भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरा हिस्सा / मनीष मूंदड़ा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 19 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष मूंदड़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सांझ की नीरवता में
खामोशियों में
सिर्फ तुम्हारे साथ होने के अहसास भर से
चहक उठता हैं ये कौतुहल मन
तुम्हारे विचारों का स्पर्श
तुम्हारे ख्यालों का उत्कर्ष
हसरत भरी नजरों का आमंत्रण
तुम्हारी प्यार भरी नजरों का प्रण
सभी कुछ तो सिमटे हुए हैं
वक्त के पन्नों में

खामोशियों से अब हमें कोई शिकायत नहीं
तुम्हारी तस्वीर जो हमें साफ नजर आती हैं
तुम्हारे लिखें इन खतों में

तुमको पढ़ा हैं मैंने अनगिनत शामों में
तुमको देखा हैं इन पन्नो मैं रोज दर रोज
तुम्हारे इशारें
तुम्हारी मुस्कुराहटें
तुम्हारी पलकें
वो चमकती हुई आँखे
सभी कुछ तो जिया हैं
इन पन्नो में हर रोज
वो सब आज मेरा हिस्सा है