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Kavita Kosh से
सीने में भर लूँगा
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'''कितने युग बाद मिले''''''पतझर था मन में'''''''तुम बनकर फूल खिले।'''
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फिर से वह राग जगा
हम तो इतना जाने
दुनिया नफरत की
ये प्यार न पहचाने*पहचाने।
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