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अंगारों के तकिये रखकर / ज्ञान प्रकाश विवेक

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अंगारों के तकिए रखकर
हम बारूदों के घर सोये

सन्नाटों के जल में हमने
बेचेनी के शब्द भिगोये

टी-हाऊस में शोर-शराबा
जंगल में सन्नाटा रोये

एक कैलेंडर खड़ा हुआ है
तारीख़ों का जंगल ढोये

हाथ में आए शंख-सीपियाँ
हमने दरिया खूब बिलोये

दिन का बालक सुबह-सवेरे
धूप के पानी से मुँह धोये

चौराहे पर खड़ा कबीरा
जग का मुजरा देखे, रोये