भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंजाम आज खुद़ / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

Kavita Kosh से
Dr.jagdishvyom (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 14:25, 14 अप्रैल 2007 का अवतरण (New page: रचनाकार: ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग' Category:ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग' [[Category:...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


अंजाम आज खुद़ से अनजान हो रहा है

आगाज़ ही अजल का सामान हो रहा है


कुछ और कह रही हैं लोहूलुहान राहें

कुछ और मंज़िलों से ऐलान हो रहा है


है चोर ही सिपाही मुंसिफ़ है खुद़ ही क़ातिल

किस शक्ल में नुमायाँ इंसान हो रहा है


जिनको मिली है ताक़त दुनिया सँवारने की

ख़ुदगर्ज आज उनका ईमान हो रहा है


देखा पराग तुमने दुनिया का रंग बोलो

इन हरक़तों से किसका नुक़सान हो रहा है।