भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंत की शुरूआत / कुमार विक्रम

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:00, 11 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विक्रम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंत में उसने कहा था
कि अंत में सब ठीक हो जाएगा
अंतत: सबका भला होगा
मैंने सोचा था
अंत अंत में ही आएगा
मुझे यह इल्म नहीं था
कि अंत दरअसल
एक रोज़ाना ख़बर थी
और अंत अंत में नहीं
बल्कि हर पल
आने वाले अंत की
एक बानगी दिखाता जाएगा
शायद मेरी ही तरह
उसे भी यह अंदाज़ा नहीं था
कि वह जिस अंत की बात कर रहा था
वह दरअसल अंत नहीं
बल्कि अंत की सिर्फ़ शुरूआत थी।

‘बहुवचन’ 2017