भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अखबार जैसा दिन / गुलाब सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब सिंह |संग्रह=बाँस-वन और बाँ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो ("अखबार जैसा दिन / गुलाब सिंह" सुरक्षित कर दिया (‎[edit=sysop] (बेमियादी) ‎[move=sysop] (बेमियादी)))
 
(कोई अंतर नहीं)

17:30, 7 जनवरी 2014 के समय का अवतरण

सुबह की खिड़की खुली
अखबार जैसे
गिर गया है दिन।

बढ़ गई फिर
शहर के नाखून-सी
टेढ़ी नदी
सीढ़ियाँ विज्ञापनों की
चढ़ गई
प्यासी सदी

डूबने के डर सरीखे
झाँकते घर
छत-मुँडेरों बिन।

सुर्खियों-से
सड़क या पगडण्डियों पर
उग रहे काँटे
सीत के सैलाब बहते
भीड़ के
बेनाम सन्नाटे

ख़बर है
जल उतरने के बाद
दूने हो गए दुर्दिन।