भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अख़बार / गुलज़ार

Kavita Kosh से
Abha Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:53, 22 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह = पुखराज / गुलज़ार }} <poem> सारा दिन मैं खू…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सारा दिन मैं खून में लथपथ रहता हूँ
सारे दिन में सूख-सूख के कला पड़ जाता है खून
पपड़ी सी जम जाती है
खुरच खुरच के नाखूनों से चमड़ी छिलने लगती है
नाक में खून की कच्ची बू
और कपड़ों पर कुछ काले काले चकते से रह जाते हैं

रोज़ सुबह अखबार मेरे घर
खून से लथपथ आता है