भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अखाड़ा / आरसी प्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:00, 16 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरसी प्रसाद सिंह |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत मशहूर दुनिया में हमारा यह अखाड़ा है,
भयंकर भीम भी आकर यहाँ पढ़ता पहाड़ा है।

बहादुर वीर रुस्तम से यहाँ सुहराब लड़ता है,
यहाँ बलवान गामा है जिविस्को भी पछड़ता है।
सितारे हिंद है कोई यहाँ वनराज है कोई,
हिरण पर शेर है कोई बया पर बाज़ है कोई।
यहाँ खरगोश ने धर कर शिकारी को पछाड़ा है,
बहुत मशहूर दुनिया में हमारा यह अखाड़ा है।

हमारे इस अखाड़े में कन्हैयालाल लड़ते हैं,
बहुत से भूत लड़ते हैं, बहुत बेताल लड़ते हैं।
बहुत चौबे, बहुत छब्बे, बहुत दुब्बे लपटते हैं,
यहाँ चूहे मिलाकर हाथ, बिल्ली पर झपटते हैं।
नदी की एक मछली से यहाँ घड़ियाल हारा है,
बहुत मशहूर दुनिया में हमारा यह अखाड़ा है!

-साभार: कागज की नाव, आरसीप्रसाद सिंह, 48-50