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अगर बदल न दिया / फ़िराक़ गोरखपुरी

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अगर बदल न दिया आदमी ने दुनियाँ को,
                 तो जान लो कि यहाँ आदमी कि खैर नहीं.
हर इन्किलाब के बाद आदमी समझता है,
                 कि इसके बाद न फिर लेगी करवटें ये ज़मीं.
बहुत न बेकसी-ए-इश्क़ पर कोई रोये,
                 कि हुस्न का भी ज़माने में कोई दोस्त नहीं.
अगर तलाश करें,क्या नहीं है दुनियाँ में,
                 जुज़ एक ज़िन्दगी कि तरह ज़िन्दगी कि नहीं.