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अगर / अमरजीत कौंके

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अगर मेरी कविताएँ
किसी के दर्द का
बयान नहीं करती
तो उड़ने दो
मेरी कविताओं को
सड़कों और गलियों में
कूड़े के ढेरों पर
जिनको कूड़ा चुनते बच्चे
बेच कर
अनाज की मुट्ठी खरीद सकें

अगर मेरी कविताएँ
किसी समस्या का ज़िक्र
नहीं करतीं
तो बिकने दो
मेरी कविताओं को
रद्दी की दुकानों पर
जिन में दुकानदार
थोड़ा-थोड़ा सौदा डाल कर बेचें

अगर मेरी कविताएँ
किसी के दर्द की
कहानी नहीं कहतीं
तो दे दो मेरी कविताएँ
बच्चों के हाथों में
जिन में तिनके जोड़ कर
वे उन की पतंग
बना कर उड़ाएं

अगर मेरी कविताएँ
किसी मुहब्बत भरे दिल की
बात नहीं करतीं
तो करके इन का
पुर्ज़ा पुर्ज़ा
कर दो
जल प्रवाह
नदी के जल में
 
बिल्कुल
हमदर्दी न करना
मेरी कविताओं के साथ

अगर यह
आम आदमी के
किसी काम की नहीं
तो इनको
लाईब्रेरियों में
सँभाल कर
क्या करना।