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"अच्छा लगे कि बुरा किसी को बोलूँ खरा-खरा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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सावन का अंधा मैं नहीं कि देखूँ हरा-हरा
  
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शाम को घर वापस लौटूँगा क्या गारन्टी है
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घर से रोज़ निकलता हूँ पर कितना डरा-डरा
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आप बतायें कहाँ सही है कु़दरत का इन्साफ़
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ख़ाली है तालाब हमारा बादल भरा-भरा
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जीवन में आँधी की तरह वो आया चला गया
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भूल चुका हूँ उसको, पर यादें हैं ज़रा-ज़रा
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अब तो जो चाहो हो जाता है कम्प्यूटर से
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सहराओं में फूल खिला लो कर दो हरा-भरा
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जाने कब उठ गया ग़रीबी-रेखा केे ऊपर
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नीमर तो वैसा ही दिखता अब भी मरा- मरा
 
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21:05, 30 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण

अच्छा लगे कि बुरा किसी को बोलूँ खरा-खरा
सावन का अंधा मैं नहीं कि देखूँ हरा-हरा

शाम को घर वापस लौटूँगा क्या गारन्टी है
घर से रोज़ निकलता हूँ पर कितना डरा-डरा

आप बतायें कहाँ सही है कु़दरत का इन्साफ़
ख़ाली है तालाब हमारा बादल भरा-भरा

जीवन में आँधी की तरह वो आया चला गया
भूल चुका हूँ उसको, पर यादें हैं ज़रा-ज़रा

अब तो जो चाहो हो जाता है कम्प्यूटर से
सहराओं में फूल खिला लो कर दो हरा-भरा

जाने कब उठ गया ग़रीबी-रेखा केे ऊपर
नीमर तो वैसा ही दिखता अब भी मरा- मरा