भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार= मुनव्वर राना
 
|रचनाकार= मुनव्वर राना
|संग्रह=घर अकेला हो गया / मुनव्वर राना
+
|संग्रह=घर अकेला हो गया / मुनव्वर राना;बदन सराय / मुनव्वर राना
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]

16:10, 31 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण


अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं
जो शायर हैं वो महफ़िल में दरी- चादर उठाते हैं

तुम्हारे शहर में मय्यत को सब काँधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं

इन्हें फ़िरक़ापरस्ती मत सिखा देना कि ये बच्चे
ज़मीं से चूमकर तितली के टूटे पर उठाते हैं

समुन्दर के सफ़र से वापसी का क्या भरोसा है
तो ऐ साहिल, ख़ुदा हाफ़िज़ कि हम लंगर उठाते हैं

ग़ज़ल हम तेरे आशिक़ हैं मगर इस पेट की ख़ातिर
क़लम किस पर उठाना था क़लम किसपर उठाते हैं

बुरे चेहरों की जानिब देखने की हद भी होती है
सँभलना आईनाख़ानो, कि हम पत्थर उठाते हैं