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अपना नाम से जे तोपले बन्हले बानीं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
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अपना नाम से जे के तोपले-बंधले बानीं
से नाम का जेहल में मर रहल बा।
सब कुछ भुला के रात-दिन जतने हम
एह नाम का दीवार के आकाश में उठाइले,
ओतने ओह दीवार के छाया का अन्हार में
हमार सत्यस्वरूप छपित हो जाला।
माटी पर माटी ध के
नाम का दीवार के ऊँच करत रहिले।
ओमें कहीं कवनो छेद मत रह जाय
एकरे चिंता में चित्त के बेचैन राखिले।
जतने एह झूठ के जोगाइले
ओतने अपना सत्यस्वरूप के भुलाइले।