भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी बेटी के लिए-6 / प्रमोद त्रिवेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:24, 14 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद त्रिवेदी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> बड़ी नहीं ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़ी नहीं होती कभी बेटियाँ
पर समझदार हो जाती हैं वे कुछ जल्दी ही
सीख देती हैं अपनी माँ को
थामती हैं इस तरह वे अपनी माँ का हाथ
कि सुरक्षित मान सकती है ख़ुद को
वह बेटी की हिफ़ाज़त में।

सोचती है माँ-
कितनी जल्दी आगे
निकल जाती हैं बेटियाँ
हर बात में