भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपने पथ पर चलना / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=धरती का आयतन / रम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:53, 10 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
चलने की खा कर सौ कसमें
पंथी हार न जाना पथ में।
तेरी ही थकान जब तुझ से
तीखा वाद-विवाद करेगी
एक गुनगुनी सिहरन तेरे
तन-मन को फौलाद करेगी
पानीदार आग होती है
पथ के दावेदार शपथ में।
अन्तर की चिनगारी का तू
जिस दिन कर देगा अनुमोदन
जाने कितने रूप बदल कर
आएँगे हर बार प्रलोभन
फिर भी अपने पथ पर चलना
मत चढ़ना चाँदी के रथ में।