भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपने ही फासले / सरोज कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सपनों के पैताने अमलतास
बिस्तर पर सिरहाने च्यवनप्राश!

तन-मन की दूरी को
जीवनभर नापते
घाव हुए पैर रिसे
हाँफते-हाँफते!

सपनों में मेघदूत आवारे
जीवन में खिड़की भर हरी घास!

दूर-दूर पहुँच गए
मंजिल पर काफिले,
मिटे नहीं अपने से
अपने ही फासले!

सपनों में इन्द्रधनुष, कार्निवाल
कालिज में हिन्दी की वही क्लास!