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अपशकुनको दोबाटोमा / सन्तोष थेबे

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सतीले थुकेर हो
या जङ्गेले मुतेर
यहाँ खैँ के हुन्छ, हुन्छ
कसैले भन्न सक्दैन
आलु रोप्यो
बैगुन फल्छ
बैगुन रोप्यो
आलु फल्छ
चाखेर हेर्दा
पिँडालुजस्तो कोक्याउँछ ।