भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपाहिज व्यथा को वहन कर रहा हूँ / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यंत कुमार |संग्रह=साये में धूप / दुष्यन्त कुमार }} [[Ca...)
(कोई अंतर नहीं)

19:28, 29 जून 2008 का अवतरण

अपाहिज व्यथा को वहन कर रहा हूँ

तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ


ये दरवाज़ा खोलें तो खुलता नहीं है

इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ


अँधेरे में कुछ ज़िन्दगी होम कर दी

उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ


वे संबंध अब तक बहस में टँगे हैं

जिन्हें रात—दिन स्मरण कर रहा हूँ


मैं अहसास तक भर गया हूँ लबालब

तेरे आँसुओं को नमन कर रहा हूँ


समालोचकों की दुआ है कि मैं फिर

सही शाम से आचमन कर रहा हूँ