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सुनी, भाउ !
बुद्धों की तुमने यह गीतकथा
हमने यह नहीं रची
उपजी यह स्वयमेव
छिपे हुए थे मन में
कहीं किसी कोने में बुद्धदेव
उमगे थे
कभी उसी कोने से मोह-व्यथा
सुनते जो हम भीतर
करुणा का भीगा स्वर
गूँज रहा उससे ही है
सबकी साँसों का अन्तःपुर
गई-रात
उसने ही सपने में हमें मथा
घटनाएँ इसमें हैं
अद्भुत अनुरागों की
नहीं मिलेगी तुमको कथा यहाँ
सूखे बैरागों की
नेह भरो
साँसों में - बुद्धों की यही प्रथा