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"अब नये साल की मोहलत नहीं मिलने वाली / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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अब तो सब दश्ना-ओ-ख़ंज़र की ज़ुबाँ बोलते हैं
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न मेरे ज़ख़्म खिले हैं न तेरा रंग-ए-हिना  
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न मेरे ज़ख़्म खिले हैं न तेरा रंग-ए-हिना <br>
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मौसम आये ही नहीं अब के गुलाबों वाले <br><br>
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19:57, 28 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

अब नये साल की मोहलत नहीं मिलने वाली
आ चुके अब तो शब-ओ-रोज़ अज़ाबों वाले

अब तो सब दश्ना-ओ-ख़ंज़र की ज़ुबाँ बोलते हैं
अब कहाँ लोग मुहब्बत के निसाबों वाले

ज़िन्दा रहने की तमन्ना हो तो हो जाते हैं
फ़ाख़्ताओं के भी किरदार उक़ाबों वाले

न मेरे ज़ख़्म खिले हैं न तेरा रंग-ए-हिना
मौसम आये ही नहीं अब के गुलाबों वाले