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"अभी उजाला दूर है शायद / निशान्त जैन" के अवतरणों में अंतर

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अभी उजाला दूर है शायद
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दीवाली-दर-दीवाली ,
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दीप  जले, रंगोली दमके,
 
दीप  जले, रंगोली दमके,
 
फुलझड़ियों और कंदीलों से,
 
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गली-गली और आँगन चमके।
 
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लेकिन कुछ आँखें हैं सूनी,
 
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और अधूरे हैं कुछ सपने,
 
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कुछ नन्हे-मुन्ने चेहरे भी,
 
कुछ नन्हे-मुन्ने चेहरे भी,
 
ताक रहे गलियारे अपने।
 
ताक रहे गलियारे अपने।
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खाली-खाली से कुछ घर हैं,
 
खाली-खाली से कुछ घर हैं,
 
कुछ चेहरों से नूर है गायब,
 
कुछ चेहरों से नूर है गायब,
 
अलसाई सी आँखें तकतीं,
 
अलसाई सी आँखें तकतीं,
 
अभी उजाला दूर है शायद।
 
अभी उजाला दूर है शायद।
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थकी-थकी सी उन आँखों में,
 
थकी-थकी सी उन आँखों में,
 
आओ थोड़ी खुशियाँ भर दें,
 
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कुछ मिठास उन तक पहुँचाकर,
 
कुछ मिठास उन तक पहुँचाकर,
 
कुछ तो उनका दुखड़ा हर लें।
 
कुछ तो उनका दुखड़ा हर लें।
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कुछ खुशियाँ और कुछ मुस्कानें,
 
कुछ खुशियाँ और कुछ मुस्कानें,
 
पसरेंगी हर सूने घर में,
 
पसरेंगी हर सूने घर में,
 
मुस्कुराहटें-खिलखिलाहटें,
 
मुस्कुराहटें-खिलखिलाहटें,
 
मिल जाएँगी अपने स्वर में।
 
मिल जाएँगी अपने स्वर में।
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तभी मिटेगा घना अँधेरा,
 
तभी मिटेगा घना अँधेरा,
 
तभी खिलेंगे वंचित चेहरे,
 
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रोशन होंगी तब सब आँखें,
 
रोशन होंगी तब सब आँखें,
 
तभी खिलेंगे स्वप्न सुनहरे।</poem>
 
तभी खिलेंगे स्वप्न सुनहरे।</poem>

22:14, 20 जनवरी 2019 के समय का अवतरण

दीवाली-दर-दीवाली ,
दीप जले, रंगोली दमके,
फुलझड़ियों और कंदीलों से,
गली-गली और आँगन चमके।

लेकिन कुछ आँखें हैं सूनी,
और अधूरे हैं कुछ सपने,
कुछ नन्हे-मुन्ने चेहरे भी,
ताक रहे गलियारे अपने।

खाली-खाली से कुछ घर हैं,
कुछ चेहरों से नूर है गायब,
अलसाई सी आँखें तकतीं,
अभी उजाला दूर है शायद।

थकी-थकी सी उन आँखों में,
आओ थोड़ी खुशियाँ भर दें,
कुछ मिठास उन तक पहुँचाकर,
कुछ तो उनका दुखड़ा हर लें।

कुछ खुशियाँ और कुछ मुस्कानें,
पसरेंगी हर सूने घर में,
मुस्कुराहटें-खिलखिलाहटें,
मिल जाएँगी अपने स्वर में।

तभी मिटेगा घना अँधेरा,
तभी खिलेंगे वंचित चेहरे,
रोशन होंगी तब सब आँखें,
तभी खिलेंगे स्वप्न सुनहरे।