भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अमृत और ज़हर दोनों हैं सागर में एक साथ / प्रदीप" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = प्रदीप }} {{KKCatGeet}} <poem> अमृत और ज़हर दोन...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार = प्रदीप | + | |रचनाकार=प्रदीप |
}} | }} | ||
{{KKCatGeet}} | {{KKCatGeet}} | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
दुनिया के तारनहार | दुनिया के तारनहार | ||
− | हमको दोनों हैं पसंद तेरी धूप | + | हमको दोनों हैं पसंद तेरी धूप और छाँव |
दाता किसी भी दिशा में ले चल ज़िन्दगी की नाव | दाता किसी भी दिशा में ले चल ज़िन्दगी की नाव | ||
− | चाहे | + | चाहे हमें लगा दे पार डूबा दे चाहे हमे मझधार |
दो भी देना चाहे देदे करतार | दो भी देना चाहे देदे करतार | ||
दुनिया के तारनहार | दुनिया के तारनहार | ||
</poem> | </poem> |
17:50, 6 मार्च 2014 के समय का अवतरण
अमृत और ज़हर दोनों हैं सागर में एक साथ
मंथन का अधिकार है सबको फल प्रभु तेरे हाथ
तेरे फूलों से भी प्यार
तेरे काँटों से भी प्यार
जो भी देना चाहे देदे करतार
दुनिया के तारनहार
तेरे फूलों से भी प्यार
चाहे सुख दे या दुःख, चाहे ख़ुशी दे या गम
मालिक जैसे भी रखेगा वैसे रह लेंगे हम
चाहे हंसी भरा संसार दे या आंसुओं की धार
दो भी देना चाहे देदे करतार
दुनिया के तारनहार
हमको दोनों हैं पसंद तेरी धूप और छाँव
दाता किसी भी दिशा में ले चल ज़िन्दगी की नाव
चाहे हमें लगा दे पार डूबा दे चाहे हमे मझधार
दो भी देना चाहे देदे करतार
दुनिया के तारनहार