भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अरज / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:33, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अरज म्हारी सुण ले
रे बनवारी!

आंख्यां थकां म्हूं आंधौं हूं
नीं कर सूझै उजास

करया घणाई प्रयास ......
पण बिना थारी किरपा
नीं फळयौ एक भी!
अब तूं ही बता -
म्हूं जारी राखूं प्रयास
का छोड़-छाड़ सौ कीं
भजूं तनै!