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"अर्थशाला / भाग 3 / केशव कल्पान्त" के अवतरणों में अंतर

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मार्शल की परिभाषा को भी,
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दोष मुक्त हम कह न सकेंगे।
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इस युग की परिभाषाओं में,
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सर्वश्रेष्ठ हम कह न सकेंगे ॥26॥
 
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कहता है रोबिन्स कि मार्शल,
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की परिभाषा सत्य नहीं है।
 
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‘भौतिक’ और ‘अभौतिकता’ का
 
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भौतिक सुख की सीमाओं में,
 
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अर्थशास्त्र क्या बंध सकता है।
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भौतिकता से दूर क्रियाओं,
 
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से भी तो जीवन सधता है ॥29॥
 
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उचित नहीं उद्देश्य एक बस,
 
उचित नहीं उद्देश्य एक बस,
मानव की कल्याण साध्ना।
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द्रव्य तराजू लिए हाथ में,
 
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मानव का कल्याण आँकना ॥30॥
 
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मानव की गठरी के अन्दर,
 
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इच्छाओं का बोझ बंध है।
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इच्छाओं का बोझ बँधा है।
 
एक चाह पूरी होते ही,
 
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नव इच्छा का रूप सजा है ॥33॥
 
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इच्छाएँ अनन्त हैं साथी,
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इच्छाएँ अनन्त हैं, साथी !
 
लेकिन साधन तो हैं सीमित।
 
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साधन की तुलना में रहती,
 
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वैकल्पिक रूपों में होता।
 
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इच्छा का अपना स्वरूप नित,
 
इच्छा का अपना स्वरूप नित,
नये-नये सपनों में होता ॥35॥
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नए-नए सपनों में होता ॥35॥
 
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22:24, 19 अप्रैल 2013 का अवतरण

मार्शल की परिभाषा को भी
दोष-मुक्त हम कह न सकेंगे।
इस युग की परिभाषाओं में
सर्वश्रेष्ठ हम कह न सकेंगे ॥26॥

कहता है रोबिन्स कि मार्शल
की परिभाषा सत्य नहीं है।
‘भौतिक’ और ‘अभौतिकता’ का
अंतर ही स्पष्ट नहीं है ॥27॥

क्या यथार्थ जीवन के अन्दर,
‘साधरण व्यवहार’ झलकता।
मार्शल की परिभाषा में यह,
शब्द निरर्थक-सा है लगता ॥28॥

भौतिक सुख की सीमाओं में,
अर्थशास्त्र क्या बँध सकता है।
भौतिकता से दूर क्रियाओं,
से भी तो जीवन सधता है ॥29॥

उचित नहीं उद्देश्य एक बस,
मानव की कल्याण साधना।
द्रव्य तराजू लिए हाथ में,
मानव का कल्याण आँकना ॥30॥

नूतन रंग तूलिका से था,
अर्थशास्त्र का रूप सँवारा।
लन्दन का विख्यात विचारक,
था ‘रोबिन्स’ सभी का प्यारा ॥31॥

अर्थशास्त्र का महल खड़ा है,
चार मूल तत्वों के ऊपर।
जीवन का अस्तित्व टिका है,
कुछ यथार्थ सत्यों के ऊपर ॥32॥

मानव की गठरी के अन्दर,
इच्छाओं का बोझ बँधा है।
एक चाह पूरी होते ही,
नव इच्छा का रूप सजा है ॥33॥

इच्छाएँ अनन्त हैं, साथी !
लेकिन साधन तो हैं सीमित।
साधन की तुलना में रहती,
हैं आवश्यकताएँ असीमित ॥34॥

सीमित साधन का प्रयोग तो,
वैकल्पिक रूपों में होता।
इच्छा का अपना स्वरूप नित,
नए-नए सपनों में होता ॥35॥

The definition by Marshall is free,
From drawbacks we cannot say.
Is it the best in the present age,
Nor can we freely say.

According to learned Robbins,
The definition by Marshall is untrue.
As the difference of material and immaterial,
Is not understandable without a clue.

Is the ordinary behaviour of man,
In real life ever reflected.
The word in Marshall's definition,
Appears to be wrongly selected.

Can Economics be limited within,
Bounds of happiness worldly.
Activities quite remote from the world,
Do sustain a life really.

The only aim of Economic Welfare,
Of man is not justifiable.
Evaluation of human welfare,
With the scale of wealth undesirable.

Robbins, the beloved of all, was,
The renowned philosopher of London.
With the help of new pigment and brush,
He graced its image anon.

The palace of Economics is,
On four fundamental facts raised.
The existence of life is,
On some real elements based.

Man has a bundle of wants,
With great heaviness indeed.
The next is ready in a new form,
As soon as the first is fulfilled.

Means are limited, friend,
Whereas wants are unlimited.
Wants in relation to means,
Are always, you know, unlimited.

Limited means are used, indeed,
In alternative forms.
But the desire in novel dreams,
Daily itself informs.