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"अवसादी मन! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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'''कभी तो छूटेगा।'''
 
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'''किरनें बन फूटेगा।'''
 
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मौन भी टूटेगा
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10:54, 13 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण


सुन रे ओ अवसादी मन!
बहुत नहीं तेरा जीवन ।

हिम गलेगा निश्चय मानो,
मौन भी टूटेगा,
असंवादी जीवन का पहरा
कभी तो छूटेगा।

चुप्पी का है
कोहरा छाया
कुछ नहीं सूझे
मन भरमाया ।

आशा का मन में ये उजाला
किरनें बन फूटेगा।
हिम गलेगा निश्चय मानो,
मौन भी रूठेगा ।