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अश्क़ पीते और खाते ग़म रहे / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
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अश्क़ पीते और खाते ग़म रहे
हर क़दम पर मुस्कुराते हम रहे
ज़ख़्म जिस बेरहम ने हमको दिए
हम उसी से मांगते मरहम रहे
प्यार में कुर्बान सब कुछ कर दिया
यार की नज़रों में फिर भी कम रहे
दोस्तों ने दुश्मनी को मात दी
फिर भी भरते दोस्ती का दम रहे
फूल जिनको मान बैठे भूल से
वो खटकते शूल से हरदम रहे
लाख ज़ालिम ने किए जुल्मो-सितम
हम उसूलों पर मगर क़ायम रहे
संग-दिल निकले हुआ जब सामना
हम सदा कहते जिन्हें शबनम रहे
दरअसल हमदर्द था कोई नहीं
साथ कितने ही ‘मधुप’ हमदम रहे