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"अश्क बन कर के निकलता क्यों है / सिया सचदेव" के अवतरणों में अंतर

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16:46, 5 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण

अश्क बन कर के निकलता क्यों है
दर्द ये क़ल्ब में पलता क्यों है

जबकि फ़ानी है जहां की हर चीज़
फिर ये इंसान मचलता क्यों है

कोई तो है जो बचाता हैं उसे
वर्ना वो गिर के सभलता क्यों है

तुम न समझे की दिया मिटटी का
तेज़ आंन्धी में भी जलता क्यों है

जान बाकी न हो दीपक में तो फिर
ये धुवाँ उससे निकलता क्यों है

वो जो आता है मुहाफ़िज़ बन कर
वो दरिन्दे में बदलता क्यों है