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मैं तलछट सी निकालकर
फेंक दी गई हूँ
किनारे पर
लहरों को मेरा
साथ बहना
रास नहीं आया

मैं न शंख थी
न सीपी
कि चुन ली गई होती
किन्ही उत्सुक निगाहों से
रेत थी
रेत सी रौंदी गई
काल के क्रूर हाथों से