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आँखों के सपने को मरने न देना / उर्मिल सत्यभूषण

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आँखों के सपने को मरने न देना
जीवन की इस लौ को बुझने न देना

कर्मों की भूमि में रहना कर्मरत
छलियों के छल बल को छलने न देना

विश्वासों के संबल लेकर के चलना
खुद को भी निश्चय से गिरने न देना

कांटों के जंगल में खुशियों की कलियाँ
दामन में भर लेना डिगने न देना

अंधेरों ने उर्मिल मुँह की है खाई
आशा के सूरज को ढलने न देना।