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"आईना टूट गया : लखनऊ की एक निजी दुपहर / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर

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06:38, 3 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

गर्मी की उमस भरी दोपहरी।
सलाखों से तीर की तरह भीतर पैठती धूप !
मेरे हाथों में एक आईना है !

भीगे बालों वाली एक लड़की
हाथ में भरी हुई बाल्टी लिए
सीढ़ियाँ चढ़ रही है ।
एक गीत है सम्पूर्ण परिवेश को घेरता ।
उसके आगे पीछे एक आहट है ।
परिचय - आत्मीयता और वायदों की आहट !

जीवित होती है चिट्ठियों की परम्परा !
होती है शंका की बीमारी ।
रिश्ता बदलता है ।
[रिश्ता बदलने से मन नहीं बदलता]
चिट्ठियों की परम्परा मर जाती है !
भीगे बालॊं वाली लड़की जूड़ा बाँध लेती है !

गीत अब भी तैरता है !
आहटें आज भी आती हैं !
सिर्फ आईना टूट गया है !
(1961)