भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आखर री औकात, पृष्ठ- 48 / सांवर दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:06, 23 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सांवर दइया |संग्रह=आखर री औकात / सां...' के साथ नया पन्ना बनाया)
काटो तो म्है’र
घर-घर ऊगो है
भूख रो घास
०००
दवा लो घणी
ताव उतर्यो कोनी
बैद बदळां
०००
रोवै टींगर
बजावां झुणझुणा
हंसै ई कोनी
०००
हियै कांवळा
आठूं ई पौर कैवै
हिंसा ना करो
०००
नूंवी लहरां
जुगां जूना किनारा
टूटणा नक्की
०००