भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज ! / गोपीकृष्ण 'गोपेश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज घाव दिल के भर आए !

आज जवानी की समाधि पर
चेतनता का दीप उठा जल,
हिली - डुली वह लपक हवा में
या उल्लास हँस उठा चंचल ?
धन्य हुआ आँसू का जीवन,
पानी ने पत्थर पिघलाए !
आज घाव दिल के भर आए ! !

सोख लिया नयनों का सागर
रूप - राशि ने मुनि अगस्त्य बन,
मधु - वसन्त में हवा बही यों
झुलस गए थे नन्दन - कानन !
एक आह ने पलटा अग - जग,
कौन व्यर्थ को बात बढ़ाए !
आज घाव दिल के भर आए ! !

जीवन की सूनी राहों पर
आज लगे तारों के मेले,
आज न साथी गिन पाता हूँ,
कल तो था, किन्तु अकेले !
स्वर्ण - रजत का भावी समझे,
अश्रु - केलि कर जी बहलाए,
वह जग में मानव कहलाए !
आज घाव दिल के भर आए ! !