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"आज के दौर में ऐ दोस्त / सुदर्शन फ़ाकिर" के अवतरणों में अंतर

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आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
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ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है
  
आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है <br>
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जब हक़ीक़त है के हर ज़र्रे में तू रहता है  
ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है <br><br>
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फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है  
  
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अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है <br><br>
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ज़िन्दगी जीने के क़ाबिल ही नहीं अब "फ़ाकिर"  
अपनी नज़रों में हर इन्सान सिकंदर क्यूँ है <br><br>
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ज़िन्दगी जीने के क़ाबिल ही नहीं अब "फ़ाकिर" <br>
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वर्ना हर आँख में अश्कों का समंदर क्यूँ है <br><br>
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07:03, 7 मई 2014 के समय का अवतरण

आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है

जब हक़ीक़त है के हर ज़र्रे में तू रहता है
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है

अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी
अपनी नज़रों में हर इन्सान सिकंदर क्यूँ है

ज़िन्दगी जीने के क़ाबिल ही नहीं अब "फ़ाकिर"
वर्ना हर आँख में अश्कों का समंदर क्यूँ है