भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज शाम / प्रभात रंजन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आस्माँ पर
आज शाम,
गुलाबों की पंखुरियाँ कौन बिछा गया है?

पंखुरियों की पंक्तियों पर पंक्तियाँ
लाल, पीले, श्वेत, नीले
गुलाब की पंखुरियों के
झिलमिलाते साये
कौन डाल गया है?

चिकनी पंखुरियाँ
एक पर एक, एक पर एक...
अनगिनत फूलों की...
गुलमुहर, चम्पा, बेले के रेशे-
कौन बिछा गया है?

शायद,
वे अभी
दफ़न करके लौटे हैं
सूरज को।

कुछ काले हाथ
मज़ार पर
फूल डाल आए हैं।