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आज सारे फूल एक साथ खिलें / रवीन्द्रनाथ त्यागी

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आज सारे फूल एक साथ खिलें
नावें चढ़ा लें अपने पीले पाल
बन्द कर दें वन के वृक्ष
गिरानी पीली पत्ती
आज मैं चाहता हूँ
ख़ुशी का एक युवा गीत लिखना
मात्र एक युवा गीत।

शहर की लकदक भीड़
हाथ फैलाकर भिक्षा मांग्ते बच्चे
फटे कपड़ों में भूखे मज़दूर
सड़कों पर सोते थके-मांदे कुली

इन सबके बीच निकलने पर
मुझे वह अपना गीत मिल गया वापस
जो मैंने सुनसान वनों में खोया था कभी
किसी नदी के किनारे।