भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आज है तेरा जनम दिन, तेरी फुलबगिया में / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपालदास "नीरज" |संग्रह=नीरज की पाती / गोपालदास "नीरज" }} आ...)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=नीरज की पाती / गोपालदास "नीरज"
 
|संग्रह=नीरज की पाती / गोपालदास "नीरज"
 
}}
 
}}
आज है तेरा जनम दिन, तेरी फुलबगिया में<br>
+
{{KKCatKavita}}
फूल एक और खिल गया है किसी माली का<br>
+
<poem>
आज की रात तेरी उम्र के कच्चे घर में<br>
+
आज है तेरा जनम दिन, तेरी फुलबगिया में
दीप एक और जलेगा किसी दीवाली का। <br><br>
+
फूल एक और खिल गया है किसी माली का
 +
आज की रात तेरी उम्र के कच्चे घर में
 +
दीप एक और जलेगा किसी दीवाली का।  
  
आज वह दिन है किसी चौक पुरे आँगन में<br>
+
आज वह दिन है किसी चौक पुरे आँगन में
बोलने वाला खिलौना कोई जब आया था<br>
+
बोलने वाला खिलौना कोई जब आया था
आज वह वक्त है जब चाँद किसी पूनम का <br>
+
आज वह वक्त है जब चाँद किसी पूनम का  
एक शैतान शमादान से शरमाया था। <br><br>
+
एक शैतान शमादान से शरमाया था।  
  
आज एक माँ की हृदय साध और तुलसी पूजा<br>
+
आज एक माँ की हृदय साध और तुलसी पूजा
बनके राधा किसी झूले में किलक उठी थी<br>
+
बनके राधा किसी झूले में किलक उठी थी
आज एक बाप के कमजोर बुढ़ापे की शमा <br>
+
आज एक बाप के कमजोर बुढ़ापे की शमा  
एक गुड़िया की शरारत से भड़क उठी थी।<br><br>
+
एक गुड़िया की शरारत से भड़क उठी थी।
  
मेरी मुमताज अगर शाहजहाँ होता मैं<br>
+
मेरी मुमताज अगर शाहजहाँ होता मैं
आज एक ताजमहल तेरे लिए बनवाता<br>
+
आज एक ताजमहल तेरे लिए बनवाता
सब सितारों को कलाई में तेरी जड़ देता <br>
+
सब सितारों को कलाई में तेरी जड़ देता  
सब बहारों को तेरी गोद में बिखरा आता। <br><br>
+
सब बहारों को तेरी गोद में बिखरा आता।  
  
किन्तु मैं शाहजहाँ हूँ न सेठ साहूकार <br>
+
किन्तु मैं शाहजहाँ हूँ न सेठ साहूकार  
एक शायर हूँ गरीबी ने जिसे पाला है<br>
+
एक शायर हूँ गरीबी ने जिसे पाला है
जिसकी खुशियों से न बन पाई कभी जीवन में<br>
+
जिसकी खुशियों से न बन पाई कभी जीवन में
और जिसकी कि सुबह का भी गगन काला है।<br><br>
+
और जिसकी कि सुबह का भी गगन काला है।
  
काँपती लौ, यह सिपाही, यह धुआँ यह काजल<br>
+
काँपती लौ, यह सिपाही, यह धुआँ यह काजल
उम्र सब अपनी इन्हें गीत बनाने में कटी, <br>
+
उम्र सब अपनी इन्हें गीत बनाने में कटी,  
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब <br>
+
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब  
ज़िन्दगी वेद थी पर जिल्द बँधाने में कटी। <br><br>
+
ज़िन्दगी वेद थी पर जिल्द बँधाने में कटी।  
  
लाखों उम्मीद भरे चाँद गगन में चमके<br>
+
लाखों उम्मीद भरे चाँद गगन में चमके
मेरी रातों के मगर भाग्य में बादल ही रहे,<br>
+
मेरी रातों के मगर भाग्य में बादल ही रहे,
लाख रेशम की नक़ाबों ने लगाये मेले<br>
+
लाख रेशम की नक़ाबों ने लगाये मेले
मेरी गीतों की छिली देह पै वल्कल ही रहे। <br><br>
+
मेरी गीतों की छिली देह पै वल्कल ही रहे।  
  
आज सोचा था तुझे चाँद सितारे दूँगा।<br>
+
आज सोचा था तुझे चाँद सितारे दूँगा।
हाथ में चन्दन लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं<br>
+
हाथ में चन्दन लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं
राष्ट्र भाषा की है सेवा का पुरस्कार यही <br>
+
राष्ट्र भाषा की है सेवा का पुरस्कार यही  
ज़ख्मों पर मेरे तीरों के सिवा कुछ भी नहीं। <br><br>
+
ज़ख्मों पर मेरे तीरों के सिवा कुछ भी नहीं।  
  
आज क्या दूँ मैं तुझे कुछ भी नहीं दे सकता <br>
+
आज क्या दूँ मैं तुझे कुछ भी नहीं दे सकता  
गीत हैं कुछ कि जो अब तक न कभी रुठे हैं<br>
+
गीत हैं कुछ कि जो अब तक न कभी रुठे हैं
भेंट में तेरी इन्हें ही मैं भेजता हूँ तुझे<br>
+
भेंट में तेरी इन्हें ही मैं भेजता हूँ तुझे
हीरे मोती तो दिखावे है कि सब झूठे हैं। <br><br>
+
हीरे मोती तो दिखावे है कि सब झूठे हैं।  
  
प्यार से स्नेह से होंठों पे बिठाना इनको<br>
+
प्यार से स्नेह से होंठों पे बिठाना इनको
और जब रात घिरे याद इन्हें कर लेना <br>
+
और जब रात घिरे याद इन्हें कर लेना  
राह पर और भी काली जो कहीं हो कोई <br>
+
राह पर और भी काली जो कहीं हो कोई  
हाथ जो इनके दिया है वह उसे दे देना। <br>
+
हाथ जो इनके दिया है वह उसे दे देना।  
 +
</poem>

19:44, 11 जून 2014 का अवतरण

आज है तेरा जनम दिन, तेरी फुलबगिया में
फूल एक और खिल गया है किसी माली का
आज की रात तेरी उम्र के कच्चे घर में
दीप एक और जलेगा किसी दीवाली का।

आज वह दिन है किसी चौक पुरे आँगन में
बोलने वाला खिलौना कोई जब आया था
आज वह वक्त है जब चाँद किसी पूनम का
एक शैतान शमादान से शरमाया था।

आज एक माँ की हृदय साध और तुलसी पूजा
बनके राधा किसी झूले में किलक उठी थी
आज एक बाप के कमजोर बुढ़ापे की शमा
एक गुड़िया की शरारत से भड़क उठी थी।

मेरी मुमताज अगर शाहजहाँ होता मैं
आज एक ताजमहल तेरे लिए बनवाता
सब सितारों को कलाई में तेरी जड़ देता
सब बहारों को तेरी गोद में बिखरा आता।

किन्तु मैं शाहजहाँ हूँ न सेठ साहूकार
एक शायर हूँ गरीबी ने जिसे पाला है
जिसकी खुशियों से न बन पाई कभी जीवन में
और जिसकी कि सुबह का भी गगन काला है।

काँपती लौ, यह सिपाही, यह धुआँ यह काजल
उम्र सब अपनी इन्हें गीत बनाने में कटी,
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब
ज़िन्दगी वेद थी पर जिल्द बँधाने में कटी।

लाखों उम्मीद भरे चाँद गगन में चमके
मेरी रातों के मगर भाग्य में बादल ही रहे,
लाख रेशम की नक़ाबों ने लगाये मेले
मेरी गीतों की छिली देह पै वल्कल ही रहे।

आज सोचा था तुझे चाँद सितारे दूँगा।
हाथ में चन्दन लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं
राष्ट्र भाषा की है सेवा का पुरस्कार यही
ज़ख्मों पर मेरे तीरों के सिवा कुछ भी नहीं।

आज क्या दूँ मैं तुझे कुछ भी नहीं दे सकता
गीत हैं कुछ कि जो अब तक न कभी रुठे हैं
भेंट में तेरी इन्हें ही मैं भेजता हूँ तुझे
हीरे मोती तो दिखावे है कि सब झूठे हैं।

प्यार से स्नेह से होंठों पे बिठाना इनको
और जब रात घिरे याद इन्हें कर लेना
राह पर और भी काली जो कहीं हो कोई
हाथ जो इनके दिया है वह उसे दे देना।