"आदत, खराब है / मुकुट बिहारी सरोज" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=मुकुट बिहारी सरोज |
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | मेरी | + | {{KKCatGeet}} |
− | + | <poem> | |
− | + | मेरी कुछ आदत ख़राब है | |
− | + | ||
+ | कोई दूरी मुझसे नहीं सही जाती है, | ||
मुँह देखे की मुझसे नहीं कही जाती है | मुँह देखे की मुझसे नहीं कही जाती है | ||
+ | मैं कैसे उनसे प्रणाम के रिश्ते जोडूँ — | ||
+ | जिनकी नाव पराए घाट बही जाती है । | ||
− | + | मैं तो ख़ूब खुलासा रहने का आदी हूँ | |
− | + | उनकी बात अलग, जिनके मुँह पर नक़ाब है । | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | मैं तो | + | |
− | + | ||
− | उनकी बात अलग, जिनके मुँह पर | + | |
− | + | ||
है मुझको मालूम, हवाएँ ठीक नहीं हैं | है मुझको मालूम, हवाएँ ठीक नहीं हैं | ||
− | + | क्योंकि दर्द के लिए दवाएँ ठीक नहीं हैं | |
− | क्योंकि दर्द के | + | लगातार आचरण ग़लत होते जाते हैं — |
− | + | शायद युग की नई ऋचाएँ ठीक नहीं हैं । | |
− | लगातार आचरण | + | |
− | + | ||
− | शायद युग की | + | |
− | + | ||
जिसका आमुख ही क्षेपक की पैदाइश हो | जिसका आमुख ही क्षेपक की पैदाइश हो | ||
− | + | वह क़िताब भी क्या कोई अच्छी क़िताब है । | |
− | वह | + | |
− | + | ||
वैसे, जो सबके उसूल, मेरे उसूल हैं | वैसे, जो सबके उसूल, मेरे उसूल हैं | ||
− | |||
लेकिन ऐसे नहीं कि जो बिल्कुल फिजूल हैं | लेकिन ऐसे नहीं कि जो बिल्कुल फिजूल हैं | ||
− | + | तय है ऐसी हालत में कुछ घाटे होंगे — | |
− | तय है ऐसी हालत में | + | लेकिन ऐसे सब घाटे मुझको क़बूल हैं । |
− | + | ||
− | लेकिन ऐसे सब घाटे मुझको | + | |
− | + | ||
मैं ऐसे लोगों का साथ न दे पाऊँगा | मैं ऐसे लोगों का साथ न दे पाऊँगा | ||
+ | जिनके खाते अलग, अलग जिनका हिसाब है । | ||
− | + | '''’किनारे के पेड़’ नामक काव्य-संग्रह से''' | |
+ | </poem> |
15:34, 29 अगस्त 2023 के समय का अवतरण
मेरी कुछ आदत ख़राब है
कोई दूरी मुझसे नहीं सही जाती है,
मुँह देखे की मुझसे नहीं कही जाती है
मैं कैसे उनसे प्रणाम के रिश्ते जोडूँ —
जिनकी नाव पराए घाट बही जाती है ।
मैं तो ख़ूब खुलासा रहने का आदी हूँ
उनकी बात अलग, जिनके मुँह पर नक़ाब है ।
है मुझको मालूम, हवाएँ ठीक नहीं हैं
क्योंकि दर्द के लिए दवाएँ ठीक नहीं हैं
लगातार आचरण ग़लत होते जाते हैं —
शायद युग की नई ऋचाएँ ठीक नहीं हैं ।
जिसका आमुख ही क्षेपक की पैदाइश हो
वह क़िताब भी क्या कोई अच्छी क़िताब है ।
वैसे, जो सबके उसूल, मेरे उसूल हैं
लेकिन ऐसे नहीं कि जो बिल्कुल फिजूल हैं
तय है ऐसी हालत में कुछ घाटे होंगे —
लेकिन ऐसे सब घाटे मुझको क़बूल हैं ।
मैं ऐसे लोगों का साथ न दे पाऊँगा
जिनके खाते अलग, अलग जिनका हिसाब है ।
’किनारे के पेड़’ नामक काव्य-संग्रह से