"आदम और हौवा के मानी / सरोज सिंह" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:10, 23 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
मिटटी से बने आदम
और...
उसकी पसली से बनी हौवा का
जन्नत से निकाले जाने का कसूर, सिर्फ इतना ही तो था
कि उन दोनों ने जिस्मानी फ़र्क को जान लिया था
ज़मीं पर आते-आते उस फर्क ने काफी फासला तय कर लिया
अब ज़मीं पर हौवा के पैदा होते ही उसे उढ़ा दिया जाता है
शर्म हया, सब्र, चुप्पी का जामा
और वो खुद ब खुद हिस्सा बन जाती है
आधी आबादी कहे जाने वाले उस ज़हादती जमाअत का
जिसमे पहला सबक यही सिखाया जाता है कि
तू लड़की है, जिम्मेदारी है
तू अबला है, तू नारी है
तू मरियम, है तू दुर्गा है
तू औरत है, लाचारी है
पर अब बस!
अब और नहीं पूजा जाना
अब और नहीं भोगा जाना
सभी फर्क ओ फासले मिटाने होंगे
पुराने सिखाये सबक भूलने होंगे
और...
बदलना होगा आदम और हौवा के मानी
जिसमे लड़की होना कमतर और कमज़ोर नहीं
और लड़का होना क्रूर और कठोर नहींl