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आपकी ये हवेली बड़ी / ऋषभ देव शर्मा
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आपकी ये हवेली बड़ी
फुलझडी, फुलझडी, फुलझडी
आपने चुन लिए हार पर
भेंट दीं क्यों हमें हथकडी
आपकी राजधानी सजी
यह गली तो अँधेरी पडी
कुमकुमे , झालरें , रोशनी
हिचकियाँ , आंसुओं की लड़ी
आँख में जल चुके शब्द सब
होंठ पर कील जिनके जड़ी
देखिए , द्वार पर लक्ष्मी
हाथ में राइफल ले खड़ी
भागिए अब किधर जबकि हर
लाश ने तान ली है छड़ी