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"आयातकार सलीब / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर

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कि सुनने नहीं देता  
 
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10:18, 20 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

उस रात
जब दायरों के हरकारों ने
मुझे आयताकार सलीब पर लटका दिया
चाँदनी की चीख ने
मेरे अर्ध-गोलाकार दरवाज़े पर
दस्तक दी

मैंने खिड़की खोली
सामने शहर के चौक में
तिकोने फन वाली एक नागिन ने
चांदनी का सूरज डस लिया था

...
हां, चाँदनी का भी सूरज होता है।

तभी जाना था मैंने
कि रुपये का नोट
एक आयताकार सलीब है
जो आदमी को मरने नहीं देती
पर आदमी को मार देती है

कि यह अचूक फंदा
कुबेर का कुरूप चौखटा है
दायरों के हरकारों में घिरा
कुबेर कितना ख़ूबसूरत है
कुबेर कितना बदसूरत है ?

कुबेर इतना बदसूरत है
कि देखने नहीं देता
डसा-ग्रसा सूरज
कुबेर इतना बहरा है
कि सुनने नहीं देता
चांदनी की चीख़
कुबेर इतना अंधा है
कि अनदेखी कर देता है
सूरज की हत्य

आयताकार फंदे पर लटका आदमी
खाता है
सोता है
हंसता है
रोता है
भागता है
रुकता है
और फिर अंधियारे गढ़ॆ में
कूद जाता है।