भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आरसी / नज़ीर अकबराबादी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:11, 19 जनवरी 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बनवा के एक आरसी हमने कहा कि लो।
पकड़ी कलाई उसकी जो वह शाख़सार<ref>शाख़ जैसी, कोमल</ref> सी।
लेकर बड़े दिमाग और देख यक बयक।
त्योरी चढ़ा के नाज़ में कुछ करके आरसी।
झुंझला के दूर फेंक दी और यूं कहा चै खु़श।
हम मारते हैं ऐसी अंगूठे पै आरसी।

शब्दार्थ
<references/>