भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आवन सुन्यो है मनभावन को भावती ने / देव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देव }} <poem> आवन सुन्यो है मनभावन को भावती ने आँखि...)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:45, 3 जून 2009 के समय का अवतरण


आवन सुन्यो है मनभावन को भावती ने
 
आँखिन अनँद आँसू ढरकि ढरकि उठैं ।
देव दृग दोऊ दौरि जात द्वार देहरी लौँ
 
केहरी सी साँसे खरी खरकि-खरकि उठैँ ।
टहलैँ करति टहलैँ न हाथ पाँय रँग
 
महलै निहारि तनी तरकि तरकि उठैं ।
सरकि सरकि सारी दरकि दरकि आँगी
 
औचक उचौहैँ कुच फरकि फरकि उठैँ ।


देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।