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|रचनाकार=सौदा
|संग्रह=
}}[[Category:गज़ल]]<poem>आशिक़ की भी कटती हैं क्या ख़ूब तरह रातें
दो चार घड़ी रोना, दो चार घड़ी बातें
औरों से छुटे दिलबर, दिलदार होवे मेरा
बर हक़ है अगर पीरों, कुछ तुम में करामातें [करामातें=<ref>चमत्कार] </ref>
कल लड़ गईं कूचे में आँखों से मेरी आँखें
कुछ ज़ोर ही आपस में दो दो हुई समघातें
इस इश्क़ के कूचे में ज़ाहिद तू सम्भल चलना
कुछ पेश न जावेंगी यहाँ तेरी मनजातें [मनजातें=प्रार्थना] मनाजातें<ref>प्रार्थनाएँ</ref> सौदा को अगर पूछो अहवाल <ref>हाल</ref> है ये उसका
दो चार घड़ी रोना, दो चार घड़ी बातें
</poem>
{{KKMeaning}}