भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आ रही रवि की सवारी / हरिवंशराय बच्‍चन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार:हरिवंशराय बच्चन

~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~

आ रही रवि की सवारी।


नव-किरण का रथ सजा है,

कलि-कुसुम से पथ सजा है,

बादलों-से अनुचरों ने स्‍वर्ण की पोशाक धारी।

आ रही रवि की सवारी।


विहग, बंदी और चारण,

गा रही है कीर्ति-गायन,

छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी।

आ रही रवि की सवारी।


चाहता, उछलूँ विजय कह,

पर ठिठकता देखकर यह-

रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी।

आ रही रवि की सवारी।