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"इक जरा सी समझ / इमरोज़ / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर

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हीर को जब मुहब्बत हुई  
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हीर को जब मुहब्बत हुई
घर के लोगों को समझ नहीं आई  
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घर के लोगों को समझ नहीं आई
और चाचे को तो कबूल ही नहीं हुई  
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और चाचे को तो कबूल ही नहीं हुई
मुहब्बत में और खूबसूरत हो जाते हैं  
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मुहब्बत में और खूबसूरत हो जाते हैं
हीर भी और खुबसूरत हो गई थी  
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हीर भी और ख़ूबसूरत हो गई थी
मुहब्बत की खूबसूरती देख-देख कर  
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मुहब्बत की ख़ूबसूरती देख-देख कर
कइयों की खूबसूरती जाग जाती है  
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वे भी खूबसूरत होने लग पड़ते हैं...
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पर कई...
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मुहब्बत की खूबसूरती देख बुझ जाते हैं  
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मुहब्बत की ख़ूबसूरती देख बुझ जाते हैं
जैसे हीर का चाचा बुझ कर चाचा ही न रहा  
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जैसे हीर का चाचा बुझ कर चाचा ही न रहा
 
कैदो हो गया...
 
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वैसे हीर का चाचा ही हीर की मुहब्बत देख  
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वैसे हीर का चाचा ही हीर की मुहब्बत देख
 
बुझ कर कैदो नहीं हुआ ...
 
बुझ कर कैदो नहीं हुआ ...
जिस घर में भी हीर जन्म लेती है अनचाहे  
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जिस घर में भी हीर जन्म लेती है अनचाहे
माँ - बाप को मुहब्बत कबूल नहीं होती  
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माँ-बाप को मुहब्बत कबूल नहीं होती
उस के माँ- बाप भी हीर के चाचे की तरह  
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उस के माँ-बाप भी हीर के चाचे की तरह
 
बुझ कर कैदो हो जाते हैं...
 
बुझ कर कैदो हो जाते हैं...
आँखों को देखना आता है  
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आँखों को देखना आता है
देख कर समझना नहीं  
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देख कर समझना नहीं
आम लोगों को जो दिखता है  
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आम लोगों को जो दिखता है
वह समझ नहीं आता  
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वह समझ नहीं आता
यह लोग ही हमारा समाज हैं  
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यह लोग ही हमारा समाज हैं
जिस दिन भी लोगों को यह सब जागना बुझना  
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जिस दिन भी लोगों को यह सब जागना बुझना
समझ आ गया  
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समझ आ गया
दुनिया बदल जाएगी  
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दुनिया बदल जाएगी
यह समाज बदल जाएगा  
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यह समाज बदल जाएगा
सब के चाचे सब के माँ-बाप अपने आप को भी समझ लेंगे  
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सब के चाचे सब के माँ-बाप अपने आप को भी समझ लेंगे
 
और अपनी हीरों को भी...
 
और अपनी हीरों को भी...
अपने आप से गैर हाजिर ही  
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अपने आप से गैर हाज़िर ही
अपने आप संग अनचाहे हैं  
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अपने आप संग अनचाहे हैं
और अपने आप संग हाजिर मनचाहे  
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और अपने आप संग हाज़िर मनचाहे
इक जरा सा समझ का फर्क है इक अनगोली समझ का  
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इक जरा-सा समझ का फ़र्क़ है इक अनगोली समझ का
 
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14:15, 26 जून 2020 के समय का अवतरण

हीर को जब मुहब्बत हुई
घर के लोगों को समझ नहीं आई
और चाचे को तो कबूल ही नहीं हुई
मुहब्बत में और खूबसूरत हो जाते हैं
हीर भी और ख़ूबसूरत हो गई थी
मुहब्बत की ख़ूबसूरती देख-देख कर
कइयों की ख़ूबसूरती जाग जाती है
वे भी ख़ूबसूरत होने लग पड़ते हैं...
पर कई...
मुहब्बत की ख़ूबसूरती देख बुझ जाते हैं
जैसे हीर का चाचा बुझ कर चाचा ही न रहा
कैदो हो गया...
वैसे हीर का चाचा ही हीर की मुहब्बत देख
बुझ कर कैदो नहीं हुआ ...
जिस घर में भी हीर जन्म लेती है अनचाहे
माँ-बाप को मुहब्बत कबूल नहीं होती
उस के माँ-बाप भी हीर के चाचे की तरह
बुझ कर कैदो हो जाते हैं...
आँखों को देखना आता है
देख कर समझना नहीं
आम लोगों को जो दिखता है
वह समझ नहीं आता
यह लोग ही हमारा समाज हैं
जिस दिन भी लोगों को यह सब जागना बुझना
समझ आ गया
दुनिया बदल जाएगी
यह समाज बदल जाएगा
सब के चाचे सब के माँ-बाप अपने आप को भी समझ लेंगे
और अपनी हीरों को भी...
अपने आप से गैर हाज़िर ही
अपने आप संग अनचाहे हैं
और अपने आप संग हाज़िर मनचाहे
इक जरा-सा समझ का फ़र्क़ है इक अनगोली समझ का