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इन दीपों से जलते झलमल / रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'

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इन दीपों से जलते झलमल,
मेरे मन के गीत अधूरे ।
इन दीपों से जलते मेरे स्वप्न,
हुए जो कभी न पूरे ।
केवल एक रात जलकर,
बुझ जाएगी यह दीपकमाला।
पर मरते दम तक न बुझेगा,
मुझमें तेरा रूप-उजाला ।

तेरी रूप-शिखा में मेरे
अन्धकार के क्षण जल जाते ।
तेरी सुधि के तारे मेरे
जीवन को आकाश बनाते ।
आज बन गया हूँ मैं इन दीपों का
केवल तेरे नाते ।
आज बन गया हूँ मैं इन गीतों का
केवल तेरे नाते ।