भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>
 +
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
 +
आज पहली बार मैनें उससे बेवफ़ाई की
  
 +
वरना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में
 +
या तो टूट कर रोया या फ़िर ग़ज़लसराई की
  
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की <br>
+
तज दिया था कल जिन को हमने तेरी चाहत में
आज पहली बार मैनें उससे बेवफ़ाई की <br><br>
+
आज उनसे मजबूरन ताज़ा आशनाई की  
  
वरना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में <br>
+
हो चला था जब मुझको इख़्तिलाफ़ अपने से
या तो टूट कर रोया या फ़िर ग़ज़लसराई की <br><br>
+
तूने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हमनवाई की  
  
तज दिया था कल जिन को हमने तेरी चाहत में <br>
+
तन्ज़-ओ-ताना-ओ-तोहमत सब हुनर हैं नासेह के
आज उनसे मजबूरन ताज़ा आशनाई की <br><br>
+
आपसे कोई पूछे हमने क्या बुराई की  
  
हो चला था जब मुझको इख़्तिलाफ़ अपने से <br>
+
फिर क़फ़स में शोर उठा क़ैदियों का और सय्याद  
तूने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हमनवाई की <br><br>
+
देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की  
 
+
</poem>
तन्ज़-ओ-ताना-ओ-तोहमत सब हुनर हैं नासेह के <br>
+
आपसे कोई पूछे हमने क्या बुराई की <br><br>
+
 
+
फिर क़फ़स में शोर उठा क़ैदियों का और सय्याद <br>
+
देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की <br><br>
+

19:50, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण

इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार मैनें उससे बेवफ़ाई की

वरना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में
या तो टूट कर रोया या फ़िर ग़ज़लसराई की

तज दिया था कल जिन को हमने तेरी चाहत में
आज उनसे मजबूरन ताज़ा आशनाई की

हो चला था जब मुझको इख़्तिलाफ़ अपने से
तूने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हमनवाई की

तन्ज़-ओ-ताना-ओ-तोहमत सब हुनर हैं नासेह के
आपसे कोई पूछे हमने क्या बुराई की

फिर क़फ़स में शोर उठा क़ैदियों का और सय्याद
देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की