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"इस क़दर साद-ओ-पुरकार कहीं देखा है / सौदा" के अवतरणों में अंतर

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इस क़दर साद-ओ-पुरकार1 कहीं देखा है
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इस क़दर साद-ओ-पुरकार<ref>सादा और नाज़-नख़रे वाला</ref> कहीं देखा है
बेनमूदार2 इतना नमूदार3 कहीं देखा है
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ख़्वाह4 काबे में तुझे ख़्वाह मैं बुतख़ाने में
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ख़्वाह<ref>चाहे</ref> काबे में तुझे ख़्वाह मैं बुतख़ाने में
 
इतना समझूँ हूँ मिरे यार कहीं देखा है
 
इतना समझूँ हूँ मिरे यार कहीं देखा है
  
दुख-दहिंद5 और भी हैं लेक6 किसी के कोई
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दुख-दहिंद<ref>दुख देने वाले</ref> और भी हैं लेक<ref>लेकिन</ref> किसी के कोई
दिल-सा भी दर-पए-आज़ार7 कहीं देखा है
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नज़र आती ही नहीं शक्ले-रिहाई8, मुझ-सा
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नज़र आती ही नहीं शक्ले-रिहाई<ref>रिहाई का उपाय</ref>, मुझ-सा
साइते-बद9 का गिरफ़्तार कहीं देखा है
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साइते-बद<ref>बुरी साइत</ref> का गिरफ़्तार कहीं देखा है
  
 
फिरे है कूच-ओ-बाज़ार में तू क्यों 'सौदा'
 
फिरे है कूच-ओ-बाज़ार में तू क्यों 'सौदा'
जिंसे-दिल10 का भी ख़रीदार कहीं देखा है
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जिंसे-दिल<ref>दिल रूपी वस्तु</ref> का भी ख़रीदार कहीं देखा है
  
 
'''शब्दार्थ:
 
'''शब्दार्थ:
  
1. सादा और नाज़-नख़रे वाला, 2. अप्रकट, 3. प्रकट, 4. चाहे, 5. दुख देने वाले, 6. लेकिन, 7. कष्ट देने पर आमादा, 8. रिहाई का उपाय, 9. बुरी साइत, 10. दिल रूपी वस्तु
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18:25, 15 मई 2009 का अवतरण

इस क़दर साद-ओ-पुरकार<ref>सादा और नाज़-नख़रे वाला</ref> कहीं देखा है
बेनमूदार<ref> अप्रकट</ref> इतना नमूदार<ref>प्रकट</ref> कहीं देखा है

ख़्वाह<ref>चाहे</ref> काबे में तुझे ख़्वाह मैं बुतख़ाने में
इतना समझूँ हूँ मिरे यार कहीं देखा है

दुख-दहिंद<ref>दुख देने वाले</ref> और भी हैं लेक<ref>लेकिन</ref> किसी के कोई
दिल-सा भी दर-पए-आज़ार<ref>कष्ट देने पर आमादा</ref> कहीं देखा है

नज़र आती ही नहीं शक्ले-रिहाई<ref>रिहाई का उपाय</ref>, मुझ-सा
साइते-बद<ref>बुरी साइत</ref> का गिरफ़्तार कहीं देखा है

फिरे है कूच-ओ-बाज़ार में तू क्यों 'सौदा'
जिंसे-दिल<ref>दिल रूपी वस्तु</ref> का भी ख़रीदार कहीं देखा है

शब्दार्थ:

शब्दार्थ
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