भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इस नाज़ इस अँदाज से तुम हाए चलो हो / कलीम आजिज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कलीम आजिज़ |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> इ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | इस नाज़ इस | + | इस नाज़ इस अन्दाज से तुम हाए चलो हो । |
− | रोज़ एक ग़ज़ल हम से कहलवाए चलो हो | + | रोज़ एक ग़ज़ल हम से कहलवाए चलो हो ।। |
− | रखना है कहीं पाँव तो रक्खो हो कहीं पाँव | + | रखना है कहीं पाँव तो रक्खो हो कहीं पाँव, |
− | चलना ज़रा आया है तो इतराए चलो हो | + | चलना ज़रा आया है तो इतराए चलो हो । |
− | दीवाना-ए-गुल | + | दीवाना-ए-गुल क़ैदी-ए-ज़ंजीर हैं और तुम |
− | क्या ठाट से गुलशन की हवा खाए चलो हो | + | क्या ठाट से गुलशन की हवा खाए चलो हो । |
+ | |||
+ | जुल्फों की तो फितरत ही है लेकिन मेरे प्यारे | ||
+ | जुल्फों से ज़ियादा तुम्हों बल खाए चलो हो । | ||
मय में कोई ख़ामी है न सागर में कोई खोट | मय में कोई ख़ामी है न सागर में कोई खोट | ||
− | पीना नहीं आए है तो छलकाए चलो हो | + | पीना नहीं आए है तो छलकाए चलो हो । |
हम कुछ नहीं कहते हैं कोई कुछ नहीं कहता | हम कुछ नहीं कहते हैं कोई कुछ नहीं कहता | ||
− | तुम क्या हो तुम्हीं सब से कहलवाए चलो हो | + | तुम क्या हो तुम्हीं सब से कहलवाए चलो हो । |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | वो शोख़ सितम-गर तो सितम ढाए चले | + | वो शोख़ सितम-गर तो सितम ढाए चले है |
− | तुम हो के ‘कलीम’ अपनी गज़ल गाए चलो हो | + | तुम हो के ‘कलीम’ अपनी गज़ल गाए चलो हो । |
</poem> | </poem> |
13:50, 6 मार्च 2015 के समय का अवतरण
इस नाज़ इस अन्दाज से तुम हाए चलो हो ।
रोज़ एक ग़ज़ल हम से कहलवाए चलो हो ।।
रखना है कहीं पाँव तो रक्खो हो कहीं पाँव,
चलना ज़रा आया है तो इतराए चलो हो ।
दीवाना-ए-गुल क़ैदी-ए-ज़ंजीर हैं और तुम
क्या ठाट से गुलशन की हवा खाए चलो हो ।
जुल्फों की तो फितरत ही है लेकिन मेरे प्यारे
जुल्फों से ज़ियादा तुम्हों बल खाए चलो हो ।
मय में कोई ख़ामी है न सागर में कोई खोट
पीना नहीं आए है तो छलकाए चलो हो ।
हम कुछ नहीं कहते हैं कोई कुछ नहीं कहता
तुम क्या हो तुम्हीं सब से कहलवाए चलो हो ।
वो शोख़ सितम-गर तो सितम ढाए चले है
तुम हो के ‘कलीम’ अपनी गज़ल गाए चलो हो ।