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इस सभा में चुप रहो / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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इस सभा में

चुप रहो

हुआ बहरों का

आगमन ।


ये खड़े हैं

आईने के सामने

यह जानते हैं –

अपने ही

दाग़दार

चेहरे नहीं पहचानते हैं ।

तर्क का

उत्तर बचा

केवल कुतर्कों

का वमन ।


बीहड़ से चल

हर घर तक

आ चुके हैं

भेड़िए ।

हैं भूख से

व्याकुल बहुत

इनको तनिक न

छेड़िए ।

लपलपाती

जीभ खूनी

ज़हर भरे इनके वचन ।


हलाल इनके

हाथ से

जनता हुई है

आजकल ।

काटते रहेंगे हमेशा

लूट-डाके की फ़सल ।

याद रखना

उतार लेंगे

लाश का भी

ये कफ़न ।